तकनीक बनाम धोबी
वर्तमान
समय में तकनीक पर हमारी निर्भरता बहुत ज्यादा बढ़ गई है। तभी तो दूसरे फ्लोर से
परिवार के सदस्य को बुलाने के लिए भी मोबाइल का इस्तेमाल होने लगा है। यह बात मैं
किसी और के लिए नहीं कह रहा बल्कि मेरे खुद के लिए है। तकनीक हमारी जरूरत हो सकती
है लेकिन मजबूरी नहीं। तकनीक बनाम धोबी की घटना मैं आपको सुनाने जा रहा हूं जो अभी
कुछ दिनों पहले मेरे साथ घटी है।
मैं
तक्षशिला प्रकाशन की एक किताब लेनी थी तो मैंने गूगल में सर्च किया कि उसका दफ्तर
कहां है। गूगल मैप में तक्षशिला प्रकाशन का रास्ता दिखा दिया। मैं वहां गया चौरो
तरफ देखा लेकिन मुझे वहां प्रकाशन नहीं दिखा। करीब उसके आस-पास की गलियों में मैं
दिल्ली की गर्मी में आधे घंटे तक घूमता रहा। वहां के कुछ लोगों से भी पूछा लेकिन
किसी ने कुछ सहायता नहीं की। आमतौर पर ऐसा होता है। हम जहां काम करते हैं उसके
आप-पास के बारे में बहुत जानकारी रखते हैं। क्योंकि जानकारी रखने का समय ही नहीं
मिलता। काम पर जाते हैं काम करते हैं और घर लौट आते हैं। वर्तमान समय में किसी और
की जिंदगी में क्या हो रहा हैं उससे हमें कुछ ज्यादा लेना-देना नहीं है।
बहरहाल
एक व्यक्ति ने अच्छी सलाह दी। उसने कहा बगल में एक धोबी प्रेस करता है उससे पूछ
लो। मैं गया और उस व्यक्ति ने उंगलियों पर गलियां गिन कर बताया कि कितने गली से
दाए और कहां से बाएं मुड़ना है। इतनी सटीकता देख कर मैं हैरान रह गया। उसकी बताई
गली में गया और उसी सड़क पर तक्षशिला प्रकाशन का दफ्तर था। खैर मुझे किताब तो नहीं
मिली। क्योंकि उनके पास वह किताब खत्म हो गई थी। लेकिन एक सीख जरूर मिल गई कि
तकनीक तो ठीक है लेकिन उसकी पुष्टि भी कर लेना चाहिए। गूगल मैप में दिखाए स्थान से
वास्तविक स्थान करीब डेढ़ किलोमीटर दूर था।
इसके
साथ यह बात भी सच है कि जब से मैं गूगल मैप इस्तेमाल कर रहा हूं यह पहला मौका है
जब गूगल मैप ने मुझे गलत रास्ता दिखाया है।


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