गुनाहो का देवता और मैं

by - August 31, 2018


रात के एक बजकर एक मिनट हो रहे हैं। मेरे साथ यह पहली बार हो रहा है कि मैंने किसी किताब को लंच के बाद शुरू किया और रात एक बजकर एक मिनट पर या कहें की सुबह के पहले मिनट में उसे खत्म कर दिया। मैं इस तरह से कभी नहीं पढ़ता। आमतौर पर लोगों का पढ़ाई से छत्तीस का आंकड़ा होता है मेरा सैतीस का है। मैं बहुत स्लो रीडर हूं। लेकिन मैंने पढ़ा और पढ़ता ही गया। 

 गुनाहों का देवता को पढ़ने की सलाह मेरे कुछ दोस्तों ने इस हिदायत के साथ दी थी कि हाथ में रूमाल जरूर रख लेना क्योंकि इसे पढ़ने के दौरान तुम्हारी आंखे कई बार नम हो जाएंगी। सामन्यत: मैं ज्यादा उपन्यास नहीं पढ़ता। वैसे उपन्यास क्या मैं तो कुछ भी ज्यादा नहीं पढ़ता। बस केवल अपनी जरूरत भर का। मैंने पूरे जीवन में गिने-चुने उपन्यास ही पढ़े हैं। इस उपन्यास के बारे में काफी कुछ सुना था और मेरे दोस्त ने कहा था इसको अगर शुरू कर दिया तो खत्म करने से पहले तुम नहीं छोड़ोंगे। मैं इस बात पर हंस देता था। क्योंकि मुझे मेरे पढ़ने की आदत पर पूरा भरोसा था। लेकिन मेरी आदत के उलट मैंने इस किताब को शुरू किया खत्म करने के बाद ही छोड़ा।  

मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं इस उपन्यास के बारे में क्या लिखूं। जब भी आप कोई अच्छा उपन्यास पढ़ते हैं तो उसके बारे लिखना बहुत कठिन हो जाता है। उसमें इतने सारे तत्व, कहानियां, दृश्य, पात्र समाहित होते हैं कि एक के बारे में लिखों तो दूसरा आपसे जद्दोजहद करने लगता है। हर पहलू अपने आप में महत्वपूर्णता का सागर लिए घूमता रहता है। इस उपन्यास के साथ कुछ ऐसा ही है। मोटे तौर पर देखा जाए तो उपन्यास एक माला की तरह है जिसमें प्यार ने सबको एक साथ बांधे रखने वाले घागे का काम किया है। 

इसमें समाजिक, पारिवारिक, व्यक्तिगत, आत्मिक यथार्थ के मोती बिखरे हुए हैं। इसमें जहां सामाजिक द्वंद है तो दूसरी ओर आत्मिक द्वंद भी पूरी तरह से झकझोर कर रख देता है। एक ऐसा आत्मिक द्वंद जो खुद के बारे में एक बार आपको सोचने पर मजबूर कर देगा। 

मैंने बहुत पहले एक लेख लिखा था जिसका शीर्षक था भगवान स्वार्थी नहीं होते और यकीन मानिए उस समय तक मैंने इस उपन्यास का नाम नहीं सुना था। इस उपन्यास को पढ़ने के बाद मेरे मित्र ने बताया कि यह सत्य घटना पर आधारित उपन्यास है। यह जानकर मेरे दिल में कौलूहल मच गया उप गुनाहों के देवता से मिलने का। लेकिन अफसोस यह बात काफी पुरानी हो चली है। इस कारण यह संभव नहीं हो सका। शायद जब मैं इस भौतिकी को छोड़कर परा संसार में चला जाऊ तो उनसे मिलूं। 

मैं इस उपन्यास की कहानी नहीं बताने वाला। क्योंकि अगर इसके बारे में जानना है तो इसको पढ़ना सबसे तरीका है। मैं इस उपन्यास का विश्लेषण भी नहीं कर सकता। शायद मेरी इंद्रिया अभी तक इस लायक नहीं हुई कि मैं इस तरह के किसी द्वंद को विश्लेषित कर सकूं।

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